125 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले विशाल देश में अधिसंख्य किसान अभी भी परम्परागत खेती कर रहे हैं। खेती ही नहीं, अधिकांश किसान आज के दौर में पशुपालन और कृषि से जुड़े अन्य बहुतायत व्यवसाय भी परम्परागत तरीके से ही कर रहे हैं।
आधुनिक तकनीकों और कृषि उपकरणों की मौजूदगी के बावजूद खासतौर पर तंगहाल छोटे किसान उनका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। वे घाटे की खेती करते हुए ऐसे दुष्चक्र में उलझे हैं कि ज्ञान और कौशल से वंचित रह जाते हैं। खेती और कृषि से सम्बन्धित अन्य व्यवसायों को समेकित रूप से अधिक लाभकारी बनाने के लिये कौशल विकास पर सरकार संजीदा है। आवश्यकता इस बात की है कि सरकारी योजनाओं और उनके लाभों की उन्हें सही जानकारी उपलब्ध कराई जाय।
कृषि उत्पादकता बढ़ाने सम्बन्धी सरकारी प्रयास
कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये उत्तम बीज की उपलब्धता, मृदा स्वास्थ्य प्रबन्धन के लिये मृदा स्वास्थ्य कार्ड, उर्वरकों से जुड़ी सरकारी नीतियाँ, सिंचाई जल की उपलब्धता और प्रति बूँद पानी से अधिक उपज का लक्ष्य अर्थात पानी का किफायती एवं अधिक कारगर उपयोग, विपणन, बीमा, लैंड लीजिंग और पूर्वोेत्तर भारत पर फोकस, विभिन्न मदों में किसानोंं एवं ग्रामीण लोगों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) जैसी योजनाओं के तहत फायदा पहुँचाने की पहल की गई है।
किसानोंं को प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिकतम लाभकारी उपज प्राप्त करने के लिये वैज्ञानिक तकनीकी से जोड़ा जा रहा है। 'मेरा गाँव मेरा गौरव' जैसे प्रयास से किसान लाभान्वित होंगे। कृषि सिंचाई योजनाओं को मिशन मोड में ले लिया गया है। बजट 2018-19 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिये नौ हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किये जाने से फसल की सुरक्षा का दायरा बढ़ेगा, फार्म लोन टारगेट नौ लाख करोड़ से बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपए करने एवं कृषि ऋण लक्ष्य को एक लाख करोड़ रुपए से बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपए करने की घोषणा से किसानोंं को सस्ता ऋण मिल सकेगा।
लांग टर्म इरीगेशन फंड योजनाओं उन राज्यों के लिये अच्छी साबित होगी, जहाँ पानी की किल्लत हैं। गरीबी से निजात दिलाने वाले प्रस्ताव से गाँव खुशहाल होंगे। फसलोंं को जोखिम से बचाने के साथ खेती की अन्य इनपुट लागत में कमी लाने के उपाय किये गए हैं। ग्रामीण जीवन-स्तर में सुधार और किसानोंं को समृद्ध करने वाली तकनीकें एवं उनके क्रियान्वयन के लिये किये गए प्रावधान ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने वाले साबित होंगे।
कृषि आधुनिक बनाने और किसानोंं की मदद के लिये देश के कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक तत्पर रहें, इसका पहली बार प्रावधान हुआ है। कृषि विज्ञान केन्द्र की प्रभावशीलता और प्रदर्शन में सुधार लाने के लिये 50 लाख रुपए की पुरस्कार राशि का ऐलान किया गया है। इसके साथ 543 कृषि विज्ञान केन्द्रों के बीच राष्ट्रीय-स्तर की प्राथमिकताएँ आयोजित की जा रही है।
गाँव के विकास के साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिये 33097 करोड़ रुपए (2018-19) का प्रावधान किया गया है। इसमें जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिये 412 करोड़ रुपए का एक विशेष कोष भी शामिल है। उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिये कृषि मंडियों या मुनाफाखोरों के चंगुल से मुक्त कराने का अभियान छेड़ा गया है। निस्सन्देह उत्पादों का उचित मूल्य मिलने से युवाओं में खेती के प्रति पुनः आकर्षण पैदा करना सम्भव होगा। बिगड़ी खेती को पटरी पर लाने में सरकार पिछले सालों में काफी हद तक सफल रही है।
पिछले तीन बजटों में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने और किसानोंं की आय बढ़ाने के सार्थक उपाय किये गए हैं। इन प्रावधानों से पटरी पर लौटी खेती को और रफ्तार मिलेगी। इसमें कृषि से जुड़े पाँच मुद्दों को प्रमुखता से शामिल किया गया है।
1. उत्पादन बढ़ाने के लिये तमाम जरूरी प्रयास।
2. किसानोंं को फसलों के बेहतर मूल्य दिलाने की नीतियाँ।
3. पट्टे पर भूमि देने की नीतियों में सुधार।
4. प्राकृतिक आपदाओं से त्वरित राहत के लिये तंत्र का निर्माण।
5. पूर्वोत्तर राज्यों में हरितक्रान्ति के प्रसार के लिये पहल।
किसानोंं, गरीबों एवं जरूरतमन्दों के लाभार्थ क्षेत्र विशेष की कृषि समस्याओं के समाधान हेतु चलाई गई विशिष्ट परियोजनाओं द्वारा समस्याग्रस्त अम्लीय लवणीय एवं क्षारीय भूमि का सुधार कर कृषि योग्य बनाने तथा मृदा स्वास्थ्य में आये विकारों को दूर कर फार्मजनित निवेशों (गोबर, कूड़े की खाद, कम्पोस्ट पशुशाला की खाद, हरी खाद फास्फो सल्फो नाइट्रो कम्पोस्ट, फसल अवशेषों का संरक्षण एवं सदुपयोग आदि) के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु सहायता एवं मार्गदर्शन, शुष्क कृषि वाले क्षेत्रों की उत्पादकता बढ़ाने के लिये सिंचाई साधनों का सृजन, चेकडैम विशाल कुओं का निर्माण एवं जल समेट क्षेत्र पर आधारित परियोजनाएँ छोटे एवं सीमान्त कृषकों में आशा की नई ज्योति जगाने में कारगर साबित हुई हैं।
कृषि विकास पर टिका ग्रामीण विकास